• भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के गौरवशाली सौ वर्ष

    26 दिसम्बर 24 को हम पार्टी स्थापना की 100वीं वर्षगांठ मनाने को अग्रसर हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म उस अवधि में हुआ, जब भारत में साम्राज्यवाद विरोध संघर्ष ने जुझारू आयाम ग्रहण कर लिया था।

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    — अजित कुमार जैन
    26 दिसम्बर 24 को हम पार्टी स्थापना की 100वीं वर्षगांठ मनाने को अग्रसर हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म उस अवधि में हुआ, जब भारत में साम्राज्यवाद विरोध संघर्ष ने जुझारू आयाम ग्रहण कर लिया था। 1920-22 में ऐतिहासिक असहयोग आंदोलन में मजदूरों, किसानों, छात्रों, मध्यम वर्गों की कार्रवाई एवं चेतना को नये स्तर तक जागृत कर दिया था।


    25 दिसम्बर 1925 कुछ युवा देश भक्त महान समाजवादी अक्टूबर क्रांति से प्रेरित होकर तथा क्रांतिकारी जोश से भरकर साम्राज्यवादी उत्पीड़न का सामना करते हुए कानपुर में इक_ा हुए और उन्होंने राष्ट्रीय आजादी एवं समाजवाद के भविष्य के लिये संघर्ष करने के संकल्प के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की।
    26 दिसम्बर 24 को हम पार्टी स्थापना की 100वीं वर्षगांठ मनाने को अग्रसर हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म उस अवधि में हुआ, जब भारत में साम्राज्यवाद विरोध संघर्ष ने जुझारू आयाम ग्रहण कर लिया था। 1920-22 में ऐतिहासिक असहयोग आंदोलन में मजदूरों, किसानों, छात्रों, मध्यम वर्गों की कार्रवाई एवं चेतना को नये स्तर तक जागृत कर दिया था। लेकिन अचानक असहयोग आंदोलन वापिस किये जाने से उनमें निराशा एवं मोहभंग हो गया और वे साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के लिये नये अधिक क्रांतिकारी तथा सुसंगत मंच की खोज करने लगे। भाकपा का जन्म मजदूरों, किसानों, छात्रों के जुझारू एवं वर्गीय उभारों के बीच हुआ जो हड़तालों, संघर्षों, भूस्वामी विरोधी धाराओं के प्रतिनिधि थे। जो कानपुर में 26-28 दिसम्बर 1925 को शामिल हुए और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की। यह हल्की धारा विशाल धारा बन गई।


    भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म जुझारू साम्राज्यवाद विरोधी देश भक्त और अंतरराष्ट्रीयतावाद, राष्ट्रीय मुक्ति के लिये संघर्ष तथा समाजवाद के लिये वर्ग संघर्ष की धाराओं के मिलन से हुआ। साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंकने और पूर्ण आजादी की मांग 1921 में कांगे्रस के अहमदाबाद अधिवेशन में हजरत मोहानी (जो भाकपा स्थापना स्वागत समिति के अध्यक्ष थे) ने प्रस्ताव पेश किया। 1922 के कांगे्रस के गया अधिवेशन में सिंगारवेलु चेट्टियार (जिन्होंने कानपुर स्थापना सम्मेलन की अध्यक्षता की) ने पूर्ण आजादी की मांग दुहराई और व्यापक समर्थन हासिल किया। कलकत्ता कांगे्रस अधिवेशन 1928 में एटक, भाकपा आादि ने पचास हजार लोगों का प्रदर्शन कर पूर्ण आजादी की मांग दुहराई तब जाकर 1931 करांची कांग्रेस अधिवेशन में इस मांग को मंजूर किया। भारत और विदेशों के भारतीय राष्ट्रवादी एवं क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन की ओर आकृष्ट होने लगे। मुस्लिम क्रांतिकारियों के खिलाफ़ जिन्हें मुजाहिरों के नाम प्रसिद्ध है। उन पर चार पेशावर षडयंत्र केस चलाये गये। जिसका लक्ष्य नवजात कम्युनिस्ट आंदोलन को कुचलना था परन्तु ऐसा नहीं हुआ। अंग्रेजों ने जल्द ही दूसरा प्रहार किया। एस.ए.डांगे मुजफ्फर अहमद, नलिनी गुप्ता, शौकत अली, उस्मानी, सिंगारवेलु चेट्टियार, गुलाम हुसैन एवं अन्य के खिलाफ़ कुख्यात कानपुर षडयंत्र केस में 17 मार्च 1924 को दिये आरोप पत्र में कहा अभियुक्त कम्युनिस्टों का लक्ष्य 'एक हिंसक क्रांति द्वारा ब्रिटिश साम्राज्यवाद को पराजित करना तथा ब्रिटिश साम्राज्य की संप्रभुता से वंचित करना था।'

    मई 1924 को डांगे, मुजफ्फर अहमद, गुप्ता और उस्मानी को चार वर्ष की कैद की सजा दी गई। कम्युनिस्टों ने राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन और ट्रेड यूनियन आंदोलन में सशक्त कार्रवाइयां करना तथा राजनैतिक क्षेत्र में उनके कार्यकलापों ने राष्ट्रीय आंदोलन के क्रांतिकारी पक्ष को सामने ला दिया। जिस पर मार्च 1929 में 31 अग्रणी कम्युनिस्ट एवं ट्रेड यूनियन नेताओं को गिरफ़्तार किया जो मेरठ षडयंत्र केस के नाम से प्रसिद्ध है। इनमें एस.ए. डांगे मुजफ्फर अहमद, गंगाधर अधिकारी, पी.सी. जोशी, एस.एस. मिरजकर तथा अन्य शामिल थे।


    1930-40 के दशक के दौरान सैकड़ों जुझारू देशभक्त, राष्ट्रीय क्रांतिकारी, मजदूर शामिल हो गये। वर्ग आधार एवं वर्ग दृष्टिकोण से भाकपा ने देश की बहुमत जनता को भागीदार बनाने हेतु 1920 में एटक का गठन किया गया। 1936 में स्वामी सहजानंद सरस्वती और इन्दुलाल याज्ञिक जैसे क्रांतिकारी जनवादी नेताओं के साथ किसान सभा की स्थापना की गई जिसके झंडे तले जमींदारी प्रथा समाप्त करने, कास्तकारों की हितरक्षा, आधी बटाई की जगह दो तिहाई हिस्सा देने, जोतने वालों को जमीन देने जैसी मांगों को लेकर शक्तिशाली सामंत विरोधी किसान कार्रवाईयां हुईं। किसान संघर्ष के दौरान कार्यानंद शर्मा, ए.के. गोपालन, जीवानंदन जैसे सैकड़ों नाम है। बाद में महान लेखक, विचारक राहुल सांस्कृत्यायन भी किसान सभा में शामिल हुए और अनेक बार जेल गये। कैय्यूर शहीदों के अमर नाम, तेभाना, तेलंगाना, पेप्सू संघर्ष के वीरों के नाम अवस्मिरणीय रहेंगे।


    1936 में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना की गई। भारतीय संस्कृति के महान व्यक्तियों गुरूवर रवीन्द्रनाथ टैगोर, मुंशी प्रेमचंद, महाकवि वल्लाथोल, सज्जाद जहीर, जोश महीलावादी आदि ने लोकप्रिय, प्रगतिशील, साम्राज्यवादी विरोधी एवं फासिस्ट विरोधी लोकतांत्रिक संस्कृति का अग्रदूत लेखक संघ बन गया। 1943 में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की स्थापना बहुलवादी संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण मोड़ था। क्रांतिकारी गीत, संगीत, नाटक, नुक्कड़ नाटक के लोक रूपों के पुर्न जीवन से 'जनता को संस्कृति के निकट लाने एवं संस्कृति को जनता के निकट लाने में' मदद मिली।


    कम्युनिस्टों द्वारा सामंत विरोधी साम्राज्यवाद विरोधी लहर का प्रभाव आम जनता के साथ फौज पर भी पड़ा परिणाम स्वरूप भारतीय वायुसेना ने हड़ताल कर दी और 1946 में भारतीय नौसेना के सैनिकों एवं भारतीय अधिकारियों ने विद्रोह कर दिया जो महान विद्रोह 1857 के प्रथम स्वतंत्रता युद्ध के बाद अभूतपूर्व था। विद्रोही नौ सैनिकों ने पोतों पर से यूनियन जैक को उखाड़ फेंका और लाल, हरा एवं सफेद झंडा लहराया और देशवासियों के समर्थन की अपील की परन्तु कांग्रेस और मुस्लिम लीग द्वारा समर्थन न करने से व्यथित होकर विद्रोही नौसेनिकों ने सफेद और हरा झंडा भी समुद्र में फेंक दिया और सिर्फ लाल झंडा लेकर निकले। बंबई में दो लाख से अधिक मजदूरों ने नाविकों के समर्थन में हड़ताल कर प्रदर्शन किया जिसमें गिरनी कामगार यूनियन, एटक तथा कम्युनिस्टों की अग्रणी भूमिका थी। ऐसी सामन्त विरोधी, साम्राज्यवाद विरोधी प्रभावी जनसंघर्षों का परिणाम था कि अंग्रेज़ राज्य सम्भालने में असमर्थ थे तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की राजनैतिक स्थितियां भी समीचीन थी और 15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिली।
    (लेखक वरिष्ठ मार्क्सवादी चिंतक और एटक के अग्रणी नेता हैं।)

     

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